संस्कारधानी मे आखिर क्या है नवरात्रि और दुर्गा पूजा का इतिहास

हमारे देश मे चार नवरात्रि आती हैं लेकिन गृहस्थ लोग शारदे नवरात्रि और चेत्र नवरात्रि मे मातारानी के 9 रूपों का पूजन अर्चन करते है lबाकी 2 होती है गुप्त नवरात्रि

durga utsav
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durga utsav ka itihas
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लेकिन हर बार मन मे ये सवाल उठता हैन आखिर हमारे जबलपुर मे इसकी  शुरुआत कब हुई ,ये माना जाता है कि हमारे भारत देश मे  दुर्गा पूजन का सार्वजनिक रूप से आयोजन 11 सदी से प्रारंभ हुआ। इसका  प्रचार प्रसार नागरिकों के मध्य बंगाल से हुआ फिर  धीरे-धीरे इसने व्यापक रूप ले लिया। जबलपुर में जब प्रवासी बंगपरिवारों का जबलपुर आगमन हुआ तो वे अपने साथ बंगाल की संस्कृति, परम्पराएं, -मान्यताएं और धार्मिक आस्थाएं भी साथ लेकर आए। उनके आगमन के साथ ही मां दुर्गा की नवरात्रि में स्थापना और पूजा का क्रम प्रारंभ हुआ।

 

 

durga utsav ka itihas
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माँ दुर्गा की मिट्टी की मूर्ति बनाकर नवरात्रि में उनकी पूजा सबसे पहले जबलपुर में सन् 1872 में बृजेश्वर दत्त के घर में प्रारंभ हुई। उनके घर में दुर्गा पूजा के अवसर पर जबलपुर नगर के सभी गणमान्य एकत्रित होकर मातारानी की पूजा करते थे। तीन वर्ष के  बाद माँ दुर्गा की आराधना अंबिका चरण बैनर्जी के आवास में होने लगी। उसके बाद दुर्गा पूजा का उत्सव बंगाली क्लब में बंगला समाज द्वारा किया  जाने लगा।
जबलपुर के मूल निवासी भी बंग समाज के दुर्गोत्सव से प्रभावित हुए। जबलपुर के नागरिकों  ने दुर्गा प्रतिमा स्थापित कर नवरात्रि में पूजन अर्चना प्रारंभ कर दी। इस प्रकार हमारे जबलपुर मे दुर्गा पूजन चलन  मे आयाl

Sharada Navratri started on Ashwin Shukla Pratipada Thursday with Amrit Siddha Yoga and Sarvartha Siddhi Yoga.
 sunarhayi ki mayiya 

लेकिन क्या आपको पता है सुनरहाई की प्रथम मूर्ति कब और किसने बनाई  -हमारे जबलपुर मे कलमान सोनी ने 1878 में सुनरहाई में माँ दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की। सुनरहाई जिसे हम  सराफा भी कहते है l वह जबलपुर नगर का सोना-चांदी के व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। यहां पर  देवी प्रसाद चौधरी और उमराव प्रसाद ने स्वर्ण आभूषण से अलंकृत कर एक सुंदर दुर्गा प्रतिमा बनवाई। इसके मूर्तिकार मिन्नी प्रसाद प्रजापति थे। तब से उन्हीं का परिवार सुनरहाई की माँ दुर्गा प्रतिमा का निर्माण करने लगा।और हर साल उसी आकार उसी रूप उसी रूप सज्जा के साथ  इस परिवार की तीसरी पीढ़ी तक यह कार्य किया गया। साथ ही नूनहाई तमढ़ाई मलखम माता और उसके बाद माता काली की मूर्ति का निर्माण भी किया गया l नगर सेठानी वृहत महाकाली और बड़ी महाकाली के बाद अब मन्नत वाली महाकाली l हम आपको बता दे दालचन्द जौहरी परिवार में देवी काली की चांदी की प्रतिमा जबलपुर में काफी प्रसिद्ध हुई। वर्तमान में जबलपुर नगर व उपनगरीय क्षेत्रों में 1000 दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना की गई है। इस बार 7 करोड़ के सोने चांदी हीरे मोती से माँ सुनरहाई माता को सजाय गया है इनमें जबलपुर के विभिन्न बंगली  क्लब व कालीबाड़ी का दुर्गा पूजन देखने दूसरे शहरों के लोग नवरात्रि में जबलपुर आते हैं। पूरे भारत मे जबलपुर हा दुर्गा उत्सव और दशहरा नंबर वन होता है l 9 दिनों के बाद दसवे दिन विसर्जन और च ल समारोह को देखने दूर दूर से लोग आते है l जिसकी अगुवाई साधु संत महात्मा करते है l जगह जगह नगरवासी माई का पूजन अर्चन करते हैन गाजे बाजे ढोल नगाड़े दुल दुल घोड़ी भगवान राम सीता लक्ष्मण हनुमान जी की जीवंत झांकी लोगों के लिए आकर्षण केंद्र होते हैं  और माई की विदाई के साथ रावण मेघनाथ कुंबकरण के पुतले भी दहन किये जाते है l

mayi mahakali
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