जबलपुर संस्कारधानी मे कैसे हुई रामलीला प्रारंभ

जबलपुर संस्कारधानी मे कैसे हुई रामलीला प्रारंभ

Ramlila रामलीला की शुरुआत के बाद कब गोविंद गंज  रामलीला से हुआ मंचन 
भारत में रामलीला का प्रारंभ एक अनुमान के अनुसार  संत तुलसीदास के समय रामनगर (वाराणसी) में हुआ। कालांतर में देश के अन्य शहर या नगर ने भी इसका आरंभ किया गया । उस समय अनेक घुमन्तू रामलीला Ramlila मंडलियां अस्तित्व में आईं l जिन्होंने अनेक स्थानों में राम के जीवन के प्रसंगों कोअपने अभिनय से  प्रस्तुत किया। जबलपुर के मिलौनीगंज में डल्लन पंडित नाम के एक ब्राह्मण रहते थे। उन्होंने जबलपुर नगर में रामलीला प्रारंभ करने की दिशा में गंभीर प्रयास किया। इस क्षेत्र के संपन्न व्यापारियों से आर्थिक सहायता लेकर रामलीला काशुभारंभ किया गया।

रामलीला
govind ganj ramleela

Ramlila इतिहासविद पंकज स्वामि  के अनुसार रेलमार्ग प्रारंभ होने के पूर्व जबलपुर का पूरा व्यापार मिर्जापुर से होता था। इन दोनों स्थानों को जोडऩे वाला प्रमुख मार्ग मिर्जापुर रोड के नाम से जाना जाता  था। बैलगाडिय़ों के काफिले माल भर कर इस मार्ग से जबलपुर आते और यहां पुन: माल लेकर  मिर्जापुर लौट जाते । लल्लामान मोर मिर्जापुर के एक प्रतिष्ठित  व्यापारी हुआ करते थे। मिर्जापुर-जबलपुर मार्ग पर वो व्यय पार किया करते थे साथ ही इसके लिए   माल से भरी सैकड़ों गाडिय़ां होती थीं। वे धार्मिक और बड़े ईमानदार  व्यक्ति थे। यही कारण है इस मार्ग पर उन्होंने व्यय पारियों , तीर्थ यात्रियों व पथिकों  के लिए 108 बावलियां बनवाई ।

एक समय लल्लामान मोर जब अपनी एक बावली का निर्माण करवा रहे थे तभी उन्हें एक अंग्रेज सैनिक टुकड़ी उनके पास आई जो भोजन व पानी न मिल पाने के कारण बुरी दशा में थी। उन्होंने तीन दिनों तक उन सैनिकों का अतिथि  सत्कार किया। इसके बदले में अंग्रेज अधिकारी ने आश्वासन दिया कि जब कभी भी उन्हें सहायता की जरूरत हो तो वे उन्हें अवश्य याद करें। एक बार डल्लन पंडित जिन्होंने जबलपुर में रामलीला का शुभारंभ किया था अचानक एक मुकदमे में फंस गए। उन्होंने लल्लामन मोर से इस मामले में सहायता के लिए निवेदन किया। लल्लामन मोर ने तुंरत अंग्रेज अधिकारियों से मिलकर डल्लन पंडित को इस परेशानी से मुक्ति दिलाई।
वर्तमानसमय मे जबलपुर Ramlila रामलीला 1865 में प्रारंभ हुई, जिसके साथ रज्जू महाराज का नाम मुख्य रूप से जुड़ा है। इनके स्वर्गवास  के बाद नत्थू महाराज ने रामलीला की बागडोर सम्हाल ली । इस कार्य मे मिलौनीगंज के सभी व्यापारियों ने तन, मन, और धन से धार्मिक अनुष्ठान में अपनाभरपूर  सहयोग दिया। इनमें प्रमुख थे  मोथाजी मुनीम, साव गोपालदास, प्रभुलाल (पुत्ती) पहारिया, चुनकाई तिवारी, पंडित डमरूलाल पाठक और मठोलेलाल रिछारिया  सूत्रधार थे। बिजली आने  के पूर्व यहां रामलीला मिट्टी के तेल के भपकों व पेट्रोमेक्स की रौशनी में होती थी। 1925 में जबलपुर में बिजली आ गई। अब रामलीला बिजली के  प्रकाश में होने लगी जिससे उसका आकर्षण और प्रदर्शन अच्छा हो  गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण 1939-1942 तक रामलीला का मंचन स्थगित रहा।पुनः  1943 में इसके प्रदर्शन हेतु सरकारी आदेश मिल जाने पर रामलीला फिर से प्रारम्भ हो गई। इस बार छोटेलाल तिवारी, गोविन्ददास रावत और डॉ. नन्दकिशोर रिछारिया ने इसके संचालनमे जी जान लगा दिया। 1965 में इसके सौ वर्ष पूरे होने पर इसकी शताब्दी मनाई गई।

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उनीसवी साड़ी मे जबलपुर के सदर क्षेत्र में फौजियो के लिए छावनी एरिया था । जिस का प्रमुख मार्ग ईस्ट-स्ट्रीट हुआ करता था। इस क्षेत्र में फौजी अधिकारी ही  दिखाई देते थे।यहा बड़ी छोटी-छोटीसकरी  गलियाँ हुआ करती थींl  जिनमें सैनिक संस्थानों के कर्मचारी और उनके परिवार रहते थे। उन्हीं दिनों शिवनारायण वाजपेयी नाम के एक उद्योगपति सज्जन उत्तरप्रदेश से यहाँ आए और अपने भविष्य को सँवारने में लग गए। एक दूसरे सज्जन ईश्वरीप्रसाद तिवारी भी यहाँ आकर बस गए और ठेकेदारी का व्यवसाय शुरू किया। वे अपने साथ उत्तरप्रदेश से पासी जाति के लोगों को भी लाये थे जो उनके ठेकों में काम करते थे। तिवारी जी को 1881 में खन्दारी जलाशय निर्माण और बाद में हाईकोर्ट की भव्य इमारत बनाने का भी ठेका मिल गया। इन दोनों परिवारों में धार्मिक के प्रति बहुत रुचि थी। इन्हीं लोगों के  सहयोग से सदर क्षेत्र में पहले- रामलीला आरम्भ की गई। फौजी छावनी क्षेत्र में, जहाँ अंग्रेजों की सत्ता हो, ऐसे धार्मिक आयोजन करना बड़े साहस का काम था। जब असहयोग आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था, तब इस क्षेत्र के प्रख्यात समाज-सेवी नरसिंहदास अग्रवाल व नन्दकिशोर मिश्र के सहयोग से रामलीला का मंचन होने लगा
जैसे-जैसे नगर की जनसंख्या में वृद्धि होती गई, वैसे-वैसे नई-नई आवासीय बस्तियाँ बनती गईं। ये बस्तियाँ सदर और मिलौनीगंज क्षेत्रों से काफी दूरी पर थीं। धर्मप्रिय जनता को रामलीला आयोजन स्थलों तक पहुँचने में जब बहुत असुविधा होने लगी तो यहाँ के निवासियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में लघु रूप से रामलीलायें आरम्भ कीं। इनमें घमापुर, गढ़ा-पुरवा और गनकैरिज फैक्टरी क्षेत्र प्रमुख हैं।    वर्तमान समय मे गोविंद गंज रामलीला और गढ़ा रामलीला मे भक्तों और दर्शकों का यापार जनसेलाब वह पहुचता है और परिवार सहित रामलीला मंचन का आनंद उठाता है l

दशानन का अट्टहास
दशानन का अट्टहास

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